गाजीपुर: जब गाजीपुर का नाम आता है, तो सबसे पहले एशिया की सबसे बड़ी अफीम फैक्ट्री याद आती है। यह विशाल परिसर ब्रिटिश काल की वास्तुकला का जीता-जागता नमूना है, जहां दीवारें और इमारतें पुरानी कहानियां बयां करती हैं। लेकिन इस फैक्ट्री के बीचों-बीच एक ऐसी संरचना खड़ी है, जो देखने वालों को हैरान कर देती है। हम बात कर रहे हैं यहां की उस पुरानी पानी की टंकी की, जो किसी साधारण जलाशय से कहीं ज्यादा है। यह टैंक इतना ऊंचा और भव्य है कि इसे देखकर लगता है मानो कोई किला या दिल्ली का कुतुब मीनार हो।
ईंटों से बनी यह टंकी फैक्ट्री के गोपनीय इलाके में स्थित है। इसकी लंबाई और ऊंचाई इतनी है कि आसपास के लोग इसे ‘टावर’ कहते हैं। ब्रिटिश इंजीनियरों द्वारा बनाई गई इस संरचना में मेहराबें, मजबूत दीवारें और पुरानी शैली का काम साफ दिखता है। यह कोई आधुनिक जल मीनार नहीं, बल्कि यूरोपीय बेल्फ्री टावरों जैसी लगती है। फैक्ट्री के कर्मचारी बताते हैं कि पहले के जमाने में यह टैंक फैक्ट्री के पानी की जरूरत पूरी करता था। आज भी यह खड़ी है, लेकिन अब इसका इस्तेमाल कम हो गया है। फिर भी, इसकी मजबूती ऐसी है कि सदियों तक टिकी रहेगी।
भारत की पहली महिला राज्यपाल की याद
इस टैंक की असली खासियत सिर्फ इसकी बनावट नहीं, बल्कि इसके ऊपर खुदे हस्ताक्षर हैं। यहां भारत की पहली महिला राज्यपाल और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू के हस्ताक्षर मौजूद हैं। ये हस्ताक्षर न सिर्फ एक निशानी हैं, बल्कि देश के आजादी के आंदोलन और महिला सशक्तिकरण की गवाही देते हैं। सरोजिनी नायडू ने 1947 में उत्तर प्रदेश की गवर्नर के रूप में फैक्ट्री का दौरा किया था। उस समय उन्होंने इस टैंक पर अपने नाम के साथ कुछ शब्द लिखे, जो आज भी साफ दिखते हैं। स्थानीय इतिहासकार कहते हैं कि यह हस्ताक्षर ब्रिटिश काल के अंत और स्वतंत्र भारत की शुरुआत का प्रतीक है।
फैक्ट्री के पुराने रिकॉर्ड्स के मुताबिक, सरोजिनी नायडू का दौरा अफीम उत्पादन की गुणवत्ता जांचने के लिए था। उन्होंने टैंक को फैक्ट्री की मजबूत नींव का प्रतीक बताया था। आज ये हस्ताक्षर पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करते हैं। लेकिन अफसोस, यह जगह ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाई। गाजीपुर के लोग चाहते हैं कि इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर पर्यटन स्थल बनाया जाए।
टैंक जो इतिहास की कहानी कहता है
यह टैंक 19वीं सदी में ब्रिटिशों द्वारा बनाया गया था। अफीम फैक्ट्री 1820 में शुरू हुई थी, और यह टैंक उसके हिस्से के रूप में तैयार हुआ। इसकी ऊंचाई करीब 50 फीट है, और यह ईंटों से इतनी मजबूती से बंधी है कि भूकंप जैसी आपदाओं में भी टिकी रही। टैंक के चारों तरफ घूमने पर ब्रिटिश इंजीनियरों के नाम भी मिलते हैं। स्थानीय गाइड बताते हैं कि पहले यहां पानी स्टोरेज के लिए इस्तेमाल होता था, जो फैक्ट्री के हजारों मजदूरों की प्यास बुझाता था।
आजकल फैक्ट्री में अफीम का उत्पादन नियंत्रित तरीके से होता है, लेकिन यह टैंक एक जीवंत स्मृति है। गाजीपुर जिला प्रशासन ने इसे संरक्षित करने की योजना बनाई है। इतिहासकार ललित भट्ट कहते हैं, “यह टैंक सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि गाजीपुर के औपनिवेशिक इतिहास का दर्पण है। सरोजिनी नायडू के हस्ताक्षर इसे और खास बनाते हैं।” पर्यटक यहां आकर फोटो खींचते हैं, लेकिन ज्यादा प्रचार न होने से यह अनदेखा रह जाता है।
गाजीपुर जैसे छोटे शहरों में ऐसी धरोहरें छिपी हैं, जो देश के इतिहास को जीवंत रखती हैं। यह टैंक हमें याद दिलाता है कि औद्योगिक विकास के बीच विरासत को संभालना कितना जरूरी है। अगर आप गाजीपुर घूमने जाएं, तो अफीम फैक्ट्री जरूर देखें वहां यह टैंक आपको इतिहास की गहराई में ले जाएगा।














